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इस बार बदलेगा सीटों का गणित, अप्रैल में हो सकते हैं MCD के चुनाव

New Delhi (Kavita Upadhyay)

एमसीडी एक्ट की रोटेशन पॉलिसी के तहत दिल्ली में इस बार निगम चुनावों से पहले आरक्षित सीटों का स्वरूप बदलने वाला है। जो सीटें पहले महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, वो अब या तो किसी और वर्ग के लिए आरक्षित हो जाएंगी या सामान्य सीट के रूप में तब्दील हो जाएगी।

10 मार्च को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के संपन्न होते ही दिल्ली की तीनों नगर निगमों के चुनाव की बारी आ सकती है। माना जा रहा है कि अप्रैल में निगम के चुनाव हो सकते हैं। इसे देखते हुए राज्य चुनाव आयोग भी तैयारियों में जुट गया है और प्रमुख राजनीतिक पार्टियां भी अभी से सक्रिय हो गई हैं। मगर इस बार निगम चुनावों में सीटों का गणित बदलने वाला है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां इस बदलाव के आधार पर ही अपने नफे-नुकसान का आकलन करते हुए आगे की रणनीति बना रही हैं।

एमसीडी एक्ट की रोटेशन पॉलिसी के तहत दिल्ली में इस बार निगम चुनावों से पहले आरक्षित सीटों का स्वरूप बदलने वाला है। जो सीटें पहले महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, वो अब या तो किसी और वर्ग के लिए आरक्षित हो जाएंगी या सामान्य सीट के रूप में तब्दील हो जाएगी। इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों का स्वरूप भी बदलेगा। पिछली बार जो सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए रिजर्व थीं, वो इस बार पुरुषों के खाते में चली जाएंगी और पुरुषों की सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। सामान्य वर्ग की सीटों में भी कुछ बदलाव होने की संभावना है।

सूत्रों के अनुसार, अनुसूचित जाति की सीटों का आरक्षण 2011 की जनगणना के अनुसार ही होगा। रिजर्वेशन का फॉर्मूला भी लगभग वैसा ही होगा, जैसा 2017 में रहा था। एमसीडी में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, इसलिए यह तो तय है कि कुल 272 में से 136 सीटों पर इस बार नए उम्मीदवार उतरेंगे। इसी तरह पूरे निगम क्षेत्र में अनुसूचित जाति की जितनी आबादी है, उसके 26 पर्सेंट के हिसाब से तीनों निगमों में अनुसूचित जाति की सीटें रिजर्व की जाएंगी। पिछले हफ्ते राज्य चुनाव आयोग ने इसी मसले पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी और सभी राजनीतिक दलों को सीटों के बदलाव के संबंध में सोमवार तक अपनी राय देने के लिए कहा था। चूंकि यह बदलाव एक तय प्रक्रिया के तहत हो रहा है, ऐसे में राजनीतिक दलों के पास इसे स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। यही वजह है कि पार्टियां सीटों के आरक्षण के नए फॉर्मूले के हिसाब से अपनी रणनीति बना रही हैं।

बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि रोटेशन पॉलिसी सत्ताधारी पार्टी के लिए फायदेमंद ही रहती है, क्योंकि उम्मीदवार अपने आप बदल जाते हैं, जिससे एंटी इनकंबेंसी का असर काफी हद तक कम हो जाता है। साथ में जिनका टिकट कटता है, उनकी नाराजगी मोल लेने का रिस्क भी कम हो जाता है, क्योंकि सीट का स्वरूप ही बदल जाता है। यही वजह है कि बीजेपी इस बदलाव को सकारात्मक तरीके से देख रही है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि जिस तरह पिछली बार सारे पुराने पार्षदों के टिकट काटकर नए लोगों को टिकट दिए गए थे, वैसा इस बार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि सीटों का स्वरूप बदल जाने से ज्यादातर सीटों पर वैसे ही नए उम्मीदार खड़े करने पड़ेंगे। सूत्रों से पता चला है कि बीजेपी इसका फायदा उठाते हुए कई सीटों पर उन पुराने और अनुभवी पार्षदों को फिर से मौका दे सकती है, जिनके टिकट पिछली बार कट गए थे। इससे उनकी नाराजगी भी कम हो सकेगी और अगर पार्टी फिर से सत्ता में आती है, निगमों को अच्छी तरह चलाने में उनका अनुभव भी काम आएगा। इसके अलावा कुछ ऐसे वर्तमान पार्षदों को भी फिर से मौका मिल सकता है, जो युवा और मेहनती हैं, जिनमें योग्यता है और जिनके जीतने की संभावना भी ज्यादा है। महिला उम्मीदवारों का चयन जमीनी स्तर पर उनके कामकाज, योग्यता और जीतने की क्षमता के आधार पर किया जाएगा।

By Namami Digital News

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