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Kavita Upadhyay (Delhi)
प्रेमानंद महाराज पिछले 3 दिनों से पदयात्रा पर नहीं निकल रहे। आश्रम ने एक सूचना जारी की। इसमें कहा गया- स्वास्थ्य कारणों से महाराज की पदयात्रा अनिश्चितकाल के लिए बंद की गई है। यह सुनते ही भक्तों की आंखों में आंसू आ गए।
जबकि उनका एकान्तिक वार्तालाप अभी भी जारी है
एक भक्त के प्रश्न पूछने पर महाराज जी ने स्पष्टीकरण दिया कि उनके स्वास्थ्य से संबंधित कुछ भ्रमित जानकारी भी सोशल मीडिया पर फैल रही है जो ठीक नहीं है
वृंदावन के रमण रेती इलाके में स्थित केली कुंज आश्रम के रास्ते पर रोज भारी संख्या में भक्त पहुंच रहे। इस उम्मीद में कि शायद प्रेमानंद महाराज के दर्शन हो जाएं। भक्तों का कहना है कि महाराज के प्रवचन ने युवाओं के जीवन में बदलाव ला दिया है।
राधा रानी उन्हें जल्दी ठीक कर दें। 4 दिन पहले तक प्रेमानंद महाराज की उनके फ्लैट में हफ्ते में 5 दिन डायलिसिस होती थी। अब रोजाना हो रही है। किडनी संबंधी परेशानी से जूझ रहे संत प्रेमानंद महाराज को कब से यह समस्या हुई? उनकी दिनचर्या क्या है?
2 किमी पैदल चलकर जाते हैं महाराज प्रेमानंद महाराज रात 2 बजे वृंदावन में श्रीकृष्ण शरणम् सोसाइटी से रमणरेती स्थित आश्रम हित राधा केली कुंज के लिए निकलते हैं। 2 किमी पैदल चलकर जाते हैं। प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए रात को हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं।
आम दिनों में यह संख्या करीब 20 हजार के करीब होती है। वीकेंड पर दर्शन करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। वहीं, बड़े पर्वों पर 3 लाख से ज्यादा हो जाती है। बुधवार को इस रास्ते पर हजारों की संख्या में भक्त इंतजार में खड़े थे। मगर महाराज नहीं निकले। भक्त मायूस होकर लौट गए।
महाराज के दर्शन के लिए शुक्रवार को भी भक्त पहुंचे। मगर महाराज इस दिन भी नहीं पदयात्रा पर निकले। यह सिलसिला तीन दिन तक चला। फिर शनिवार को केली कुंज आश्रम ने पुष्टि करते हुए अनिश्चितकाल के लिए पदयात्रा बंद होने की सूचना जारी की।
कारण बताया गया महाराज जी का स्वास्थ्य सही नहीं है। जब भक्तों को उनके अस्वास्थ्य होने का पता चला, तो उनकी आंखों से आंसू झलक उठे।
2006 में पेट में दर्द हुआ तो पता चला किडनी खराब हैं संत प्रेमानंद महाराज को पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज की बीमारी है। उनको जानकारी 19 साल पहले 2006 में तब हुई जब उनके पेट में दर्द हुआ। वह कानपुर में डॉक्टर को दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनको आनुवंशिक किडनी की बीमारी है।
फिर वह दिल्ली गए। वहां एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हैं। जीवन सीमित है। इसके बाद वह वृंदावन आ गए। पहले वह काशी रहे और शिव भक्ति की।
वृंदावन में उन्होंने राधा नाम का जप शुरू किया। तब से वह लगातार राधा नाम का जप कर रहे हैं। प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी किडनी का नाम कृष्णा और राधा रखा है।
सोसाइटी में ही होती है डायलिसिस संत प्रेमानंद महाराज श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी में रहते हैं। इस सोसाइटी में उनके 2 फ्लैट हैं। HR 1 ब्लॉक के फ्लैट नंबर 209 और 212 उनके पास हैं। 2 BHK इन फ्लैट में से एक में वह रहते हैं जबकि दूसरे फ्लैट में डायलिसिस का इंतजाम किया हुआ है। इसी फ्लैट में उनका हफ्ते में 4 से 5 बार डायलिसिस होता है।
किडनी की बीमारी से जूझ रहे संत प्रेमानंद महाराज की पहले कभी-कभी डायलिसिस होती थी। फिर यह हफ्ते में होने लगी। इसके बाद हफ्ते में कभी 3 दिन, कभी 5 दिन और कभी कभी हर दिन होती है। डायलिसिस की यह प्रक्रिया 4 से 5 घंटे चलती है।
बताया जाता है कि महाराज की डायलिसिस पहले अस्पताल में होती थी। लेकिन बाद में इसके लिए मशीन और अन्य जरूरी सामान एक फ्लैट में ही रखवा दिया गया। जहां डॉक्टर उनकी डायलिसिस करते हैं। डायलिसिस के दौरान आधा दर्जन डॉक्टर की टीम वहां मौजूद रहती है।
प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध कथावाचक और संत बनने की कहानी…
13 साल की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड़ दिया था प्रेमानंद महाराज का कानपुर के अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था।
हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत निकला गणेश पांडे बताते हैं- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से देखा-सुना करता था।
शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया।
घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-खुची मोह माया भी छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए।
नंदेश्वर से महराजपुर, कानपुर और फिर काशी पहुंचे
9वीं में भास्करानंद विद्यालय में एडमिशन दिलाया गया था, लेकिन 4 महीने में ही स्कूल छोड़ दिया।
इसके बाद वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सरसौल नंदेश्वर मंदिर से जाने के बाद वह महराजपुर के सैमसी स्थित एक मंदिर में कुछ दिन रुके। फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बिठूर के बाद काशी चले गए।
संन्यासी जीवन में कई दिन भूखे रहे काशी में उन्होंने करीब 15 महीने बिताए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से गुरुदीक्षा ली। वाराणसी में संन्यासी जीवन के दौरान वो रोज गंगा में तीन बार स्नान करते। तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान-पूजन करते।
दिन में केवल एक बार भोजन करते। प्रेमानंद महाराज भिक्षा मांगने की जगह भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। अगर इतने समय में भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन बिना कुछ खाए-पीए बिताया।
भक्तों ने महाराज जी के स्वास्थ्य ठीक होने के लिए प्रार्थनाएं शुरू कर दी है
(ख़बर का सोर्स इन्टरनेट है )
