New Delhi (Namami digital News Desk)
Same Sex Marriage : भारत के कई पुरातन ग्रंथों में समलैंगिकता का जिक्र मिलता है, हालांकि इन्हें मान्यता के तौर पर कहीं नहीं लिखा गया है न ही विरोध का जिक्र मिलता है.
समलैंगिक विवाह एक बार फिर चर्चा में, सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ में इस पर सुनवाई हो रही है. याचिककर्ताओं की ओर से समलैंगिक विवाह के पक्ष में दलील जी जा रही थी तो केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है. हाल ही में केंद्र सरकार ने इस बावत सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा भी दाखिल किया था. इसमें सरकार ने कहा था कि वह समलैंगिक विवाह पर उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी राज्यों से राय लेगी.
कानून मंत्री किरन रिजिजू ने भी कहा था कि शादी एक पॉलिसी है जिसे संसद और विधायिका तय करेगी. इतिहास पर यदि नजर डालें तो भारत में सदियों से समलैंगिक संबंधों का सबूत मिलता है. कुछ ग्रंथों- रचनाओं में भी समलैंगिकता का जिक्र किया गया है, लेकिन मान्यता के रूप में ये कहीं भी अंकित नहीं हैं.
सरकार ने दी है ये दलील
सुप्रीम कोर्ट में ने सरकार की ओर से जो दलील दी गई है उसमें कहा गया है कि शादी एक ट्रेडिशनल कांसेप्ट जिसमें बायोलॉजिकल पुरुष महिला और बच्चे हैं इनसे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. सरकार ने ये भी दावा किया है कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से पर्सनल लॉ के सिस्टम से उथल पुथल मच जाएगी. वहीं याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि वि पिछले कई साल से कपल की तरह रहे हैं, इसलिए शादी करना चाहते हैं.
दुनिया में क्या हैं हालात
समलैंगिकता की कहानी सदियों पुरानी है, यह मेसोपोटामिया से लेकर प्राचीन यूनान, जापान, चीन और अन्य सभ्यताओं तक फैली है. ‘ए हिस्ट्री ऑफ द वाइफ’ में जिक्र है कि दूसरी और तीसरी सदी में समलैंगिक शादियां आम थीं. हालांकि धीरे-धीरे ये वर्जनाओं में कसती गई और अपराध की श्रेणी में शामिल हो गई. फ्रांस पहला ऐसा देश था जिसने इन वर्जनाओं को तोड़ा और समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया. धीरे-धीरे दुनिया के अन्य देशों ने भी इसे अपनाया.
भारत में समलैंगिकता का इतिहास
दुनिया भर के सभी कल्चर में समलैंगिकता मौजूद रही है. प्रसिद्ध मानव शास्त्री मार्गरेट मीड ने तो यहां तक दावा किया था कि आदिम समाज में भी समलैंगिकता प्रचलित थी. रोम के शासक नीरो ने तो दो समलैंगिक शादियां की थीं. यूनान भी इसे मान्यता देता रहा है. यदि भारत की बात करें तो यहां भी सदियों से समलैंगिक संबंधों का जिक्र मिलता है. ऋग्वेद की एक ऋचा में विकृतिः एव प्रकृतिः को समलैंगिकता के प्रति सकारात्मक नजरिए का प्रतीक माना जाता है.
एक तरह से देखें तो महाभारत से लेकर वात्स्यायन के कामसूत्र रचना तक समलैंगिक संबंधों का जिक्र मिलता है. हालांकि इनमें से कहीं भी समलैंगिकता को मान्यता दिए जाने का जिक्र नहीं है, लेकिन कहीं इनका विरोध भी नहीं किया गया है. ऐसा माना जाता है कि सभ्यता की शुरुआती दौर में यह सामान्य बात थी, लेकिन धीरे-धीरे ये वर्जनाओं में जकड़ती चली गई. प्रसिद्ध गणितज्ञ के तौर पर पहचाने जाने वाले बराहमिहिर ने अपने ग्रंथ वृहज्जातक में लिखा है कि समलैंगिकता पैदायशी होती है और इसे बदला नहीं जा सकता.
खजुराहों के मंदिर में प्रतीक, मुगल बादशाह भी थे समलैंगिक
खजुराहों के मंदिरों में बनी छवियों में भी समलैंगिकता की छाप नजर आती है. ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह बाबर भी समलैंगिक था. द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट में बाबरनामा के अनुवाद के हवाले से लिखा गया है कि बाबर जितना बहादुर था उतना ही वह वासना के वशीभूत था. शाहजहां के समय का भी इतिहासकार टवेरनियर ने जिक्र किया है कि बुरहानपुर के गवर्नर की हत्या समलैंगिकता के चक्कर में हुई थी.
सूफी कवियों ने भी किया है जिक्र
मध्यकाल में सूफी कविताओं की कविताओं में भी समलैंगिक संबंधों की छाप देखने को मिलती है. मसलन मध्यकाल में सूफी कवि सैफी ने अपनी फारसी कविता में लिखा है कि- ‘ किसी की जिंदगी तभी होगी पूरी और कामयाब, पास हो सुंदर लड़का, अच्छी शायरी और किताब. इसके अलावा भी समलैंगिकता का भारत में लंबा अतीत रहा है. कई पांडुलुपियों में ये स्पष्ट है.
नवाबों के समय भी समलैंगिकता का चलन था. नवाब आसफुद्दौला की एक रिपोर्ट ब्रिटिश इतिहासकार रोसी लेलेवेलन जोंस ने उस समय के गर्वनर को भेजी थी. इसमें कहा गया था किनवाब आसफ़ुद्दौला के समलैंगिक होने की वजह से कई वर्षों तक उसकी रानियां कुंवारी रही थीं. नवाब शुजाउद्दौला तो बेटे की आदत से इतने खफा थे कि उन्होंने उसकी हत्या करने तक की ठान ली थी.
भारत में 1861 से पहले नहीं थी कानूनी तौर पर पाबंदी
कानूनी तौर पर देखें तो भारत में समलैंगिकता को सामाजिक तौर पर भले ही गलत माना जाता रहा हो, लेकिन कानूनी तौर पर इसमें कोई बाधा नहीं थी. भारत में समलैंगिकता पर पाबंदी 1861 में लगी थी, ब्रिटिश शासन के दौरान ये आदेश लगाया गया था और धारा 377 के तहत कानून बनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था.